गाजा में चल रही जंग की खबरें सुनकर या देखकर आपका दिल भी बैठ जाता है न? हर तरफ तबाही, मौत और दर्द की तस्वीरें घूम रही हैं, जो हमें दूर बैठे होने के बावजूद परेशान कर देती हैं। ये न्यूज न सिर्फ गाजा के लोगों को तोड़ रही है, बल्कि हम जैसे आम लोगों के दिमाग पर भी भारी पड़ रही है। चिंता, डिप्रेशन और स्ट्रेस जैसी परेशानियां बढ़ रही हैं, लेकिन अच्छी बात ये है कि कुछ आसान तरीकों से हम खुद को पॉजिटिव रख सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे।
गाजा की वार्ता का दिमाग पर क्या असर पड़ रहा है?गाजा में लगातार हो रही बमबारी और विस्थापन ने वहां के लाखों लोगों की जिंदगी उजाड़ दी है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि वहां के बच्चों में 54 फीसदी PTSD यानी पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर है, जबकि बड़ों में ये 40 फीसदी तक। डिप्रेशन 41 से 45 फीसदी और एंग्जायटी 34 से 37 फीसदी लोगों को परेशान कर रही है। लेकिन ये दर्द सिर्फ गाजा तक सीमित नहीं। हम जैसे लोग जो टीवी, सोशल मीडिया या न्यूज ऐप्स पर ये तस्वीरें देखते हैं, वे भी ‘विकैरियस ट्रॉमा’ का शिकार हो जाते हैं। मतलब, बिना वहां मौजूद हुए भी ऐसा लगता है जैसे हम खुद उसी दर्द में हैं। एक स्टडी में पाया गया कि बोस्टन मैराथन बम ब्लास्ट की बार-बार न्यूज देखने से लोगों में एक्यूट स्ट्रेस हो गया था। गाजा की ग्राफिक इमेजेस देखकर गुस्सा, चिड़चिड़ापन और नींद न आना आम हो गया है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ये लगातार न्यूज देखना ‘डूमस्क्रॉलिंग’ है, जो क्रॉनिक स्ट्रेस पैदा करता है और न तो गाजा के लोगों की मदद करता है, न हमारी सेहत सुधारता है।
विस्थापन का दर्द तो और भी गहरा है। गाजा में 1.9 मिलियन से ज्यादा लोग बेघर हो चुके हैं, कई बार विस्थापित हुए हैं। ये अस्थिरता चिंता, पैनिक अटैक और PTSD को बढ़ावा देती है। बच्चे तो ऐसे खेल खेलते हैं जैसे टेंट बनाना, क्योंकि उनके दिमाग में वही डर घर कर गया है। बड़ों में गिल्ट फीलिंग आती है – ‘क्यों न भागा?’, ‘क्यों रुका?’। स्वास्थ्य व्यवस्था भी चरमरा गई है, दवाइयां और डॉक्टर कम पड़ गए हैं। यहां तक कि हेल्थकेयर वर्कर्स खुद स्ट्रेस, एंग्जायटी और हेल्पलेसनेस से जूझ रहे हैं।
न्यूज देखने से बचें, लेकिन इग्नोर भी न करें – स्मार्ट तरीका अपनाएंसोशल मीडिया पर लगातार वीडियो और फोटो देखना दिमाग को नुकसान पहुंचाता है, खासकर बच्चों और किशोरों को। ये इमेजेस 10-20 साल पहले जैसी नहीं, कहीं ज्यादा ग्राफिक और कांस्टेंट हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि बॉडी के सिग्नल्स पर ध्यान दें – अगर गुस्सा या चिंता बढ़ जाए, तो तुरंत रुकें। खासकर अगर आप किसी ग्रुप से जुड़े हैं, जैसे पैरेंट्स, तो ये इमेजेस ज्यादा हर्ट कर सकती हैं। रूटीन बनाए रखें, न्यूज को बेडटाइम से पहले बंद कर दें। स्टडीज दिखाती हैं कि न्यूज देखना बंद करने से एंग्जायटी और डिप्रेशन कम होता है। लेकिन पूरी तरह इग्नोर न करें – चुनिंदा समय पर अपडेट लें, जैसे दिन में एक बार।
पॉजिटिव रहने के लिए ये टिप्स आजमाएं – आसान और असरदारअब बात करते हैं उन तरीकों की जो आपको स्ट्रेस से दूर रखेंगी। सबसे पहले, इमोशनल रेगुलेशन पर काम करें। प्रोग्राम्स या खुद के प्रयास से इमोशंस को कंट्रोल करना सीखें, मोटिवेशन बढ़ाएं और पॉजिटिव आउटलुक रखें। ये स्ट्रेस को कम करता है। दूसरा, पॉजिटिव चीजें देखें – नेगेटिव न्यूज को काउंटर करने के लिए कोई अच्छी मूवी या मोटिवेशनल वीडियो देखें। तीसरा, एक्शन लें! गुस्सा या उदासी को पॉजिटिव चेंज में बदलें। जैसे, डोनेट करें, प्रोटेस्ट जॉइन करें या दोस्तों से बात करें। ये आपको एजेंसी का फील देगा, मतलब ‘मैं कुछ कर सकता हूं’।
फिजिकल एक्टिविटी न भूलें – वॉक करें, एक्सरसाइज करें, ये इमोशनल वेलबीइंग बढ़ाती है। दोस्तों-परिवार से कनेक्ट रहें, शेयर करें अपनी फीलिंग्स। कम्युनिटी स्पेस बनाएं जहां लोग अपनी स्टोरीज शेयर करें। अगर सिम्पटम्स ज्यादा हैं जैसे हेडेक, नींद की दिक्कत या सोशल विदड्रॉल, तो मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल से बात करें। रियलिटी का सामना करें, लेकिन बैलेंस रखें। गाजा के लोग रेजिलिएंट हैं, लेकिन हमें भी उनकी तरह मजबूत बनना है। याद रखें, आप अकेले नहीं – दुनिया भर में लाखों लोग इसी स्ट्रेस से गुजर रहे हैं। इन टिप्स से न सिर्फ खुद को बचाएं, बल्कि दूसरों की भी मदद करें।
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