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ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर

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बहने लगा है खून अब दजला फ़रात में ।

मज़हब दख़ल बढ़ने लगा है कायनात में ।

हैवानियत ने तोड़ दी सरहद तमीज़ की ,

इंसानियत रोने लगी है हर जमात में ।

नंगे बदन को नौंचते हैवान देखिए ,

अल्लाह भी बदनाम है इस वाकियात में ।

खैरात में जो पा रहे हथियार मिसाइल,

गिनने लगे हैं लाश वो अब रोज रात में ।

ये फ़ैसला कुन जंग की शुरुआत मानिए ,

घिरने लगा है विश्व अब पूरा वफ़ात में ।

बच्चे मरे बूढ़े मरे नागाह जंग में ,

क्या मांगते हैं मौत ये अपनी रकात में ।

कैसे कहूं किससे कहूं घायल है लेखिनी ,

"हलधर" नहीं हैं शेष अश्क अब दवात में ।

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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